मुझे कुछ कुछ ऐसा प्रतीत होता है कि जिन घरों में भाभियां होती हैं, तो साथ रहने वाले देवर के मन में कभी ना कभी तो पाप जाग ही जाता है और नतीजन भाभियाँ चुदने लगती हैं, या देवर भाभियों के चक्कर में आ ही जाता है। मैं तो कहती हूँ कि आग तो दोनों ओर ही बराबर सी सुलग उठती है ...तो वास्तव में इसमें गलती किसी की नहीं होती। आईये देखे, यहाँ श्री मनोहर सिंह जी क्या बता रहे हैं..
मैं गोवा का निवासी हूँ, मेरी यहाँ में पर्यटकों की आवश्यकताओं से सम्बंधित एक दुकान है। यह घटना मेरी जवानी के समय की है जब मैं मात्र 18 वर्ष का था और कॉलेज में पड़गता था। मेरे भैया की शादी हो चुकी थी। मेरे छोटे होने के कारण भाभी मुझसे बहुत स्नेह रखती थी। यूँ तो वो मुझसे सिर्फ़ पांच साल ही बड़ी थी। सच पूछो तो उसके पृष्ठ-उभार मुझे बहुत लुभाते थे, बस ! लुभाते ही थे ... पर भाभी के गोल गोल सुघड़ चूतड़ों को दबाने की इच्छा कभी नहीं हुई। भाभी अधिकतर टुक्की वाला ब्लाऊज पहनती थी। उनके कठोर पर्वत मुझे बहुत सुन्दर लगते थे, पर उन्हें मसलने जैसी इच्छा कभी नहीं हुई। उनके चिकने बदन पर मेरी दृष्टि फ़िसल फ़िसल जाया करती थी, पर ऐसा नहीं था कि मैं उस चिकने बदन को अपनी बाहों में लेकर उन्हें चूम लूँ !
बस हम दोनों एक दूसरे के साथ साथ खेलते थे। मैं उनके साथ खाना बनवाने में मदद करता था, वॉशिन्ग मशीन में कपड़े धो देता था और भी बहुत से काम कर देता था।
एक दिन अचानक ही ये सारी मर्यादायें टूट कर छिन्न भिन्न हो गई। दोनों के मन में काम भावनायें जागृत हो उठी...। उस दिन सारा काम निपटाने के पश्चात हम दोनों यूँ ही खेल रहे थे, कि मन में ज्वाला सुलग उठी। भाभी का टुक्की वाला ब्लाऊज कील में फ़ंस कर फ़ट गया और सामने से चिर गया। भाभी का एक कठोर स्तन उभर कर बाहर निकल आया। मेरी नजरें स्तन पर ज्यों ही पड़ी, मैं देखता ही रह गया, सुन्न सा रह गया। भाभी एक दम सिहर कर दीवार से चिपक गई। मैं अपनी आंखे फ़ाड़ फ़ाड़ कर उन्हें देखने लगा। भाभी सिहर उठी और अपने हाथों को अपने नंगे स्तन के ऊपर रख कर छुपाने लगी। मैं धीरे धीरे भाभी की ओर बढ़ने लगा। वो सिमटने लगी। मेरा एक हाथ उसके कठोर स्तनों को छूने के लिये बढ़ गया।
"नहीं भैया, नहीं... मत छूना मुझे !"
"ये... ये... कितने चमक दार, कितने सुन्दर है..."
मेरी अंगुलियों ने ज्यों ही उनके स्तन छुये, मेरे बदन में जैसे आग लग गई।
भाभी तुरन्त झुक कर मेरी बगल से भाग निकली, और दूर जाकर जीभ निकाल कर चिढ़ाने लगी। मैं स्तब्ध सा उन्हे देखता रह गया। जाने क्यूँ इस घटना के बाद मैं चुप चुप सा रहने लगा। मेरे दिल में भाभी के लिये ऐसे वैसे वासना भरे विचार सताने लगे। शायद जवानी का तकाजा था, जो मेरे मन को उद्वेलित कर रहा था।
शाम को मैं छत पर टहल रहा था कि भाभी वहां आ गई।
"क्या बात है, आजकल तुम बहुत गुमसुम से रहने लगे हो?"
"नहीं ... हां वो ... ओह क्या बताऊ मैं...!"
"भैया मेरी कसम है तुझे ... जो भी हो, अच्छा या बुरा... कह दो। मन हल्का हो जायेगा।"
"बात यह है कि भाभी ... अब कैसे बताऊँ..."
"मैंने कसम दी है ना ... चलो अपना मुँह खोलो..." शायद भाभी को मेरी उलझन मालूम थी।
"ओह कैसे कहूँ भाभी,... आप मुझे बहुत अच्छी लगने लगी हैं !"
"तो क्या हुआ ... तुम भी देखो ना मुझे कितने अच्छे लगते हो, है ना?" भाभी की नजरें झुक गई।
"पर शायद... मैं आपको प्यार करने लगा हूँ..."
"ऐ ... चुप... क्या कहते हो ... मैं तुम्हारी भाभी हूँ..." सुनकर भाभी ने मुस्करा कर कहा
"कसम दी थी सो बता दिया ... पर मैं क्या करू... मैं जानता हूँ कि तुम मेरी भाभी..."
"भैया, अपने मन की कहूँ... प्यार तो मैं भी तुम्हे करती हूँ" भाभी ने भी झिझकते हुये कहा।
"क्या कहती हो भाभी ..."
भाभी ने धीरे से मेरे सीने पर अपना सर रख दिया... मेरी सांसें तेज हो उठी। तभी भाभी मुड़ कर तेजी से भाग कर सीढ़ियाँ उतर गई। मैं भौचक्का सा उन्हें देखता रह गया। यह क्या हो गया ? भाभी भी मुझसे प्यार करती हैं !!! और फिर बड़े भैया ? सभी कुछ गड-मड हो रहा था। मैं छत से नीचे उतर आया। भाभी मुझे देख कर खुशी से बार बार मुस्करा रही थी जैसे उनकी कोई मन की मुराद पूरी हो गई हो। मैं चुपचाप अपने कमरे में चला आया। कुछ ही देर में भाभी भी वहीं पर आ गई। मैं बिस्तर पर लेटा हुआ था, भाभी मेरे पास बैठ कर मेरे बालों को सहलाने लगी।
"कमल, तुम तो बहुत प्यारे हो, तुम्हें देख कर मुझे तो बहुत प्यार आता है !"
"भाभी..."
"ना भाभी नहीं, दीपाली कहो, मेरा नाम लो ..." भाभी ने अपनापन दिखाते हुये कहा।
"दीपा, तुम्हें देख कर जाने मन में क्या क्या होने लगता है, ऐसा लगता है कि तुम्हें प्यार कर लूँ, चूम लूँ..." मैंने अपने होंठों पर जीभ फ़ेर कर अपनी मन की बता दी। मेरे गीले होंठ देख कर भाभी ने भी अपने होंठ थूक से गीले कर लिये और मेरे पर धीरे से झुक गई और इतने नजदीक आ गई कि उसकी गरम सांसें मेरे चेहरे से टकराने लगी।
"गीले होंठ बहुत रसीले होते हैं, एक बार और गीले कर लो !"भाभी ने अपना रस भरा अनुभव बताया।
मैंने अपने होंठ फिर से गीले कर लिये और भाभी ने अपने गीले होंठ मेरे होठों से लगा दिये और मेरा ऊपर का होंठ अपने होंठों से चूसने लगी। इतने नरम और थरथराते होंठ मुझे असीम सुख दे रहे थे। मैं पहली बार गीले नरम होंठों का स्पर्श इतनी मधुरता के साथ महसूस कर रहा था। धीरे धीरे भाभी ने अपनी जीभ भी मेरे मुख में डाल दी। भाभी की एक एक हरकत मुझे वासना की पीड़ा दे रही थी। वो अब मेरे होंठों को बेतहाशा पीने लगी थी। जब वो उठी तो उनकी आंखे वासना से सुर्ख हो गई थी। पर मेरी हिम्मत अब भी उनके स्तनों को दबाने की नहीं हो रही थी।
"बबुआ, कैसा लगा ... दिल की मुराद पूरी हुई या नहीं ?" भाभी ने मुझे मुस्कराते हुये पूछा।
मैं शरमा गया। मेरी आंखें झुक गई।
"मेरे भोले देवर, तू तो बुद्धू ही रहेगा !" और वो हंस दी।
इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि मेरा लण्ड बेहद कड़ा हो चुका था और पजामे में तम्बू जैसा तना हुआ था। भाभी ने मेरा कड़क लण्ड देखा तो उसके मुख से आह निकल गई। वो उठ कर चल दी। आज तो भाभी का मन बाग बाग हो रहा था। रात को भी भाभी ने मुझे खाने के बाद मिठाई भी खिलाई, फिर मेरा चुम्मा भी लिया। अब मेरे दिल में भाभी के शरीर की सम्पूर्ण रचना बस गई थी। रह रह कर मुझे भाभी को चोदने को चोदने का मन करने लगा था। कल्पना में भाभी की रस भरी चूत को देखता, उनके भरी हुई उत्तेजक चूंचियों के बारे में सोचने लगता था। भैया नाईट शिफ़्ट के लिये जाने वाले थे। मैं भी अपने कमरे में कम्प्यूटर पर काम करने लगा। भैया के जाने के बाद भाभी मेरे कमरे में चली आई।
"भाभी, मम्मी-पापा सो गये क्या ?"
"हां सो गये, भैया के जाते ही वे भी सो गये थे, समय तो देखो ग्यारह बज रहे हैं।"
"ओह हाँ, मैं भी अब काम बन्द करता हूँ, भाभी एक चुम्मा दे दो !"
मैं उठ कर बिस्तर पर बैठ गया। भाभी ने लाईट बन्द कर दी और कमरा भी अन्दर से बन्द कर दिया।
"अब चाहे कितनी भी बाते करो, कोई डर नहीं !"
"भाभी आप कितनी सुंदर हैं, आपके प्यारे नरम होंठ बार बार चूमने को मन करता है !"
"सच ... तुम भी बहुत अच्छे हो... मेरे दिल में बस गये हो।"
"मुझसे बहुत प्यार करती हो ना ...?"
हमारी प्यार भरी बातें बहुत देर तक चलती रहीं। मेरा दिल बहुत खुश था... भाभी और मैं बिस्तर पर लेट चुके थे... भाभी ने अपने गीले होंठ एक बार फिर मेरे गीले होठों से चिपका दिये। मेरा डण्डा तन गया था। भाभी मेरी पीठ को सहलाते हुये सामने पेट पर हाथ ले आई। भाभी के कड़े स्तन मेरी छाती से रगड़ खा रहे थे। वो बार बार अपनी चूंचियाँ मेरी छाती पर दबा दबा कर रगड़ रही थी। मुझे लगा कि जैसे मैं भाभी को सचमुच में प्यार करने लगा हूँ। मैंने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया,"भाभी सच कहूँ तो मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ, तुम्हारे बिना अब नहीं रहा जायेगा !"
"आह, मेरे कमल, तुमने तो मेरे दिल की बात की बात कह दी, मैं भी कैसे रह पाऊंगी तुम्हारे बिना... ?!!"
"पर भाभी, बड़े भैया का क्या होगा...?"
"बड़े भैया अपनी जगह है, अपन दोनों को तो बस प्यार करना है सो करते रहेंगे !"
भाभी के हाथ मेरे शरीर पर इधर उधर फ़िसल कर मुझे रोमान्चित करने लगे थे। मेरी छाती पर सर रख कर वो लेट गई थी और प्यार भरी बातें करने लगी थी। क्या वो प्यार की प्यासी थी, या उन्हें शारीरिक तृप्ति चाहिये थी ? पर कुछ भी हो, मैं तो बहुत खुश था। भाभी अपने एक एक अंग को मेरे शरीर के ऊपर दबा रही थी, सिसक रही थी... चुम्बनों से मेरा मुख गीला कर दिया था।
लण्ड मेरा फ़ूलता ही जा रहा था। लग रहा कि बस भाभी की चिकनी चूत को मार ही दूँ। भाभी के हाथ जैसे कुछ ढूंढ रहे थे... और ... और यह क्या ... ढूंढते हुए उनका हाथ मेरे तने हुए लण्ड पर आ गया। उन्होंने उसे छू लिया ... मेरा दिल अन्दर तक हिल गया। दो अंगुलियों से मेरे लण्ड को पकड़ लिया और हिलाने लगी। मुझे कुछ बचैनी सी हुई... पर मैं हिल ना सका... भाभी ने मेरे होंठों में अपनी जीभ डाल दी और मुझे कस कर चिपका लिया। मुझे एक अजीब सी सिरहन दौड़ गई। मेरे हाथ अपने आप भाभी की कमर पर कस गये। मेरा बड़ा सा लण्ड अचानक भाभी ने जोर से दबा दिया। मेरे मन में एक मीठी सी वासनायुक्त चिंगारी भड़क सी उठी।
"भाभी, आह यह कैसा आनन्द आ रहा है ... प्लीज और जोर से दबाओऽऽ !" मैं सिसक उठा।
"आह मेरे भैया ... क्या मस्त है ... " भाभी भी अपनी सीमा लांघती जा रही थी।
"भैया, अपना पजामा उतार दो !"
मेरे दिल यह सुनते ही बाग बाग हो उठा... आखिर भाभी का मन डोल ही गया। अब भाभी को चोदने का मजा आयेगा।
"नंगा होना पड़ेगा... मुझे तो शरम आयेगी !"
"चल उतार ना ... "
"भाभी... मुझसे भी नहीं रहा जाता है ... मुझे भी कुछ करने दो !"
भाभी की हंसी छूट गई ...
"किसने मना किया है ... कोई ओर होता तो जाने अब तक क्या कर रहा होता !"
"मैं बताऊँ कि क्या कर रहा होता?"
"हूँ... अच्छा बताओ तो..."
"तुम्हें चोद रहा होता... तुम्हारी चूंचियों को मसल रहा होता !"
"हाय ये क्या कह दिया कमल ... " उन्होंने मुझे चूम लिया और अपना पेटीकोट ऊपर उठा लिया।
"ले मैं अपना पेटीकोट ऊपर उठा लेती हूँ, तू अपना पजामा नीचे सरका ले !"
"नहीं भाभी, अब तो अपने पूरे कपड़े ही उतार दो... मैं भी उतार देता हूँ"
मैंने बिस्तर से उतर कर अपने सारे कपड़े उतार दिये और बत्ती जला दी। भाभी भी पूरी नंगी हो चुकी थी। पर लाईट जलते ही वो अपने बदन को छिपाने लगी। मैं भाभी के बिलकुल सामने लण्ड तान कर खड़ा हो गया। एक बारगी तो भाभी ने तिरछी नजरों से मुझे देखा, फिर लण्ड को देखा और मुस्करा उठी। वो जैसे ही मुड़ी मैंने उन्हें पीछे से दबोच लिया। मेरा लण्ड उनके चूतड़ों की दरार में समाने लगा।
"क्या पिछाड़ी मारेगा ..."
"भाभी, आपकी गाण्ड कितनी आकर्षक है ... एक बार गाण्ड चोद दूंगा तो मुझे चैन आ जायेगा... हाय कितनी मस्त और चिकनी है !"
"तो तेल लगा दे पहले ..."
मैंने तेल ले कर उसकी गाण्ड में लगा दिया और अपनी अंगुली भी गाण्ड में घुसा दी।
"ऐ ... अंगुली नहीं, लण्ड घुसा..." फिर हंस दी।
भाभी पलंग पर हाथ रख कर घोड़ी सी बन गई। मैंने भाभी के चूतड़ को चीर कर तेल से भरे छेद पर अपना लण्ड रख दिया।
"अब धीरे से अन्दर धकेल दे ... देख धीरे से...!"
मुझे गाण्ड मारने का कोई अनुभव नहीं था, पर भाभी के कहे अनुसार मैंने धीरे से दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया। मेरा सुपाड़ा फ़क से छेद में उतर गया।
"अब देख जोर से धक्का मारना ... इतना जोर से कि मेरी गाण्ड फ़ट जाये !"
मैंने पोजिशन सेट की और जोर से लण्ड को अन्दर दबा कर पेल दिया। मेरे लण्ड में एक तेज जलन सी हुई। मैंने लण्ड को तुरन्त बाहर खींच लिया। मेरे लण्ड की सुपाड़े से चिपकी झिल्ली फ़ट गई थी और खून की एक लकीर सी नजर आई।
"क्या हुआ...? निकाला क्यूँ ...? हाय कितना मजा आया था... !" भाभी तड़प कर बोली।
"यह तो देखो ना भाभी ! खून निकल आया है...!"
भाभी ने मुझे चूम लिया... और मुझसे लिपट गई।
"आह कमल, प्योर माल हो ..."
"क्या मतलब ... प्योर माल ?"
"अरे कुछ नहीं... इसे तो ठीक होने में समय लगेगा... तो ऐसा करो कि मन की आग तो बुझा लें ... कुछ करें..."
भाभी ने मेरे हाथ अपने सीने पर रख दिये... और इशारा किया कि उसे दबाये। मुझे इसका पूरा आईडिया था। भाभी की नंगी छातियों को मैं सहलाने लगा। भाभी ने अपनी आंखें बन्द कर ली। उनके उभारों को मैं दबा दबा कर सहलाने लगा था।
वासना से उनकी छाती कड़ी हो चुकी थी और चुचूक भी कड़क हो कर तन से गये थे। मैंने हौले हौले से चुचूकों और उरोजों को दबाना और मसलना आरम्भ कर दिया। भाभी के मुख से सिसकारियाँ फ़ूट पड़ी। मेरी नजरें भाभी की रस भरी चूत पर पड़ी और मैं जैसे किसी अनजानी शक्ति से उसकी ओर झुक गया। मैंने अब उसकी चूचियाँ छोड़ दी थी और उनकी जांघों को दबा कर एक तरफ़ करने लगा। भाभी ने स्वतः ही अपनी टांगें चौड़ी कर ली। चूत की एक मदहोश करने वाली महक आई और मेरा चेहरा उस पर झुकता चला गया। मैंने उसकी पतली सी दरार में जीभ घुमाई, भाभी तड़प सी गई। मेरा लण्ड बेहद कड़क हो उठा था पर हल्का दर्द भी था। मैंने भाभी की गाण्ड के छेद में एक उंगली घुसा दी और चूत के दाने और लम्बी से फ़ांक को चाटने लगा। भाभी तीव्र वासना की पीड़ा में जोर से कांपने लगी थी। उनकी जांघें जैसे कंपकंपी से लहराने लगी थी। उनके मुख प्यारी सी सी... सी सी करती हुई सिसकारियाँ फ़ूट रही थी। तभी उन्होंने मेरा चेहरा अपनी टांगों से दबा लिया और झड़ने लगी। उनका रज छूट गया था। अब उन्होने अपनी टांगें पर बिस्तर पर पसार दी थी और गहरी गहरी सांसें ले रही थी।
इधर मेरा लण्ड फ़ूल कर कुछ कर गुजरने को तड़प रहा था। पर दर्द अभी था।
भाभी ने कहा," कमल, तुम अब बिस्तर पर अपनी आंखें बन्द कर के लेट जाओ... बस आनन्द लो !"
मैं बिस्तर पर चित्त लेट गया। लण्ड कड़क हो कर लग रहा था कि फ़ट जायेगा। तभी मुझे अपने लण्ड पर कोमल सा स्पर्श महसूस हुआ। भाभी ने रक्त रंजित लण्ड अपने मुख में लिया था और हल्के से बहुत मनोहारी तरीके से चूस रही थी। मैं दर्द वगैरह सब भूल गया। भाभी ने अपने अंगूठे और एक अंगुली से मेरे लण्ड के डण्डे के पकड़ लिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी। मेरे शरीर में वासना की आग जल उठी। भाभी की पकड़ बस डण्डे के निचले भाग पर ही थी। भाभी के होंठ मेरे जरा से निकले खून से लाल हो गये थे। उनकी आंखें बन्द थी और और उनकी अंगुलियाँ और मुख दोनों ही मेरे लण्ड को हिलाते और चूसते ... मुझे आनन्द की दुनिया में घुमा रहे थे। मेरा दिल अब भाभी को चोदने को करने लगा था, पर भाभी समझदार थी, सो मेरे लण्ड को अब वो जरा दबा कर मल रही थी। शरीर में आग का शोला जैसे जल रहा था। मेरे सोचने की शक्ति समाप्त हो गई थी। बस भाभी और लण्ड ही नजर आ रहा था। अचानक जैसे शोला भभका और बुझ गया। मैंने तड़प कर अपना गाढ़ा वीर्य जोर से बाहर निकाल दिया। भाभी ने अपना अनुभव दिखाते हुये पूरे वीर्य को सफ़ाई के साथ निगल लिया। मैं अपना वीर्य पिचकारियों के रूप में निकालता रहा।
"अब कमल जी, आराम करो, बहुत हो गया..."
"पर भाभी, मेरा लण्ड बस एक बार अपनी चूत में घुसवा लो, बहुत दिनों से मैं तुम्हें चोदने के लिये तड़प रहा हूँ..."
"श्...श्... धीरे बोलो ... अभी तीन चार दिनों तक इन्तज़ार करो... वर्ना ये चोट खराब ना हो जाये, दिन में कई बार इसे साफ़ करना...!"
वो मुझे हिदायतें देकर चली गई।
अब रोज रात को हम दोनों का यही खेल चलने लगा। तीन चार दिन बाद मेरा लण्ड ठीक हो गया और मैंने आज तो सोच ही लिया था कि भाभी की गाण्ड और चूत दोनों बजाना है... पर मेरा सोचना जैसा उसका सोचना भी था। उसने भी यही सोचा था कि आज की रात सुहागरात की तरह मनाना है।
रात होते ही भाभी अपना मेकअप करके आई थी। बेहद कंटीली लग रही थी। कमरे में आते ही उन्होंने अपना पेटीकोट उतार फ़ेंका। उनके देखा देखी मैंने भी अपना पजामा उतार दिया और मेरे तने हुये लण्ड को उनकी ओर उभार दिया। हम दोनों ही वासना में चूर एक दूसरे से लिपट गये। भाभी के रंगे हुये लिपस्टिक से लाल होंठ मेरे अधरों से चिपक गये। उनके काजल से काले नयन नशे में गुलाबी हो उठे थे। भाभी के बाल को मैंने कस के पकड़ लिया और अपने जवान लण्ड की ठोकरें चूत पर मारने लगा।
"बहुत करारा है रे आज तो तेरा लण्ड ... लगता है आज तो फ़ाड़ ही डालेगा मेरी...!"
"भाभी, खोल दे पूरी आज, अन्दर घुसा ले मेरा ये किंग लिंग... मेरी जान निकाल दे ... आह्ह्ह ... ले ले मेरा लण्ड !"
" बहुत जोर मार रहा है, कितना करारा है ... तो घुसा दे मेरी पिच्छू में ... देख कितनी सारी क्रीम गाण्ड में घुसा कर आई हूँ ... यह देख !"
भाभी ने अपनी गोरी गोरी गाण्ड मेरी तरफ़ उभार दी ... मुझसे अब सहन नहीं हो रहा था। मैंने अपना कड़कता हुआ लण्ड उनकी क्रीम भरी गाण्ड के छेद के ऊपर जमा दिया। मेरा सुपारा जोर लगाते ही आप से खुल पड़ा और छेद में समाता चला गया। मुझे तेज मिठास भरी गुदगुदी हुई। भाभी झुकी हुई थी पर उनके पास कोई हाथ टिकाने की कोई वस्तु नहीं थी। मैंने लण्ड को गाण्ड में फ़ंसाये हुये भाभी को कहा,"पलंग तक चल कर बताओ इस फ़ंसे हुये लण्ड के साथ तो मजा आ जाये !"
"कोशिश करूँ क्या ..."
भाभी धीरे से खड़ी हो गई पर गाण्ड को लण्ड की तरफ़ उभार रखा था। मेरा लम्बा लण्ड आराम से उसमें फ़ंसा हुआ था। भाभी के चलते ही मेरे लण्ड में गाण्ड का घर्षण होने लगा, मेरा लण्ड दोनों गोलों के बीच दब गया। वो और मैं कदम से कदम मिला कर आगे बढ़े ... और अंततः पलंग तक पहुँच ही गये। इस बीच गाण्ड में लण्ड फ़ंसे होने से मुझे लगा कि मेरा तो माल निकला... पर नहीं निकला... पलंग तक पहुंच कर भाभी हंसते हुये बोली,"मेरी गाण्ड में लण्ड फ़ंसा कर जाने क्या क्या करोगे ... फिर चूत में घुसा कर मुझे ना चलाना !"
"नहीं भाभी मुझे लगा कि अब तुम झुकोगी कैसे, सो कहा था कि पलंग तक चलो।"
"चल शरीर कहीं के ..." भाभी ने हंसते हुये कहा और अपनी टांगें फ़ैलाने लगी और आराम जैसी पोजीशन में आ गई। आधा बाहर निकला हुआ लण्ड मैंने धीरे से दबा कर पूरा अन्दर तक उतार दिया। इस बार मुझे स्वर्ग जैसा आनन्द आ रहा था। कसी हुई गाण्ड का मजा ही कुछ और ही होता है। भाभी पीछे मुड़ कर मुझे देखने लगी। मैं तो धक्के मारने में लगा हुआ था। अचानक भाभी हंस दी।
"सूरत तो देखो... जैसे कोई खजाना मिल गया हो ... चोदते समय तुम कितने प्यारे लगते हो !"
"भाभी, उधर देखो ना, मुझे शरम आती है..."
"अच्छा जरा अब जम कर चोद दे..." भाभी ने मुझे और उकसाया।
मेरे धक्के तेज हो गये थे। भाभी भी अपनी गाण्ड हिला कर आनन्द ले रही थी।
"अरे मर गई मां ... ये क्या ... मेरी चूत चोदने लगे..."
पता नहीं कब जोर जोर से चोदने के चक्कर में लण्ड पूरा बाहर निकल रहा था और पूरा अन्दर जा रहा था। इस बार ना जाने कैसे फ़िसल कर उनकी रस भरी चूत में चला गया।
"ओह भाभी सॉरी ... ये जाने कहां कहां मुँह मारता रहता है !"
भाभी मेरी इस बात पर हंस दी, "चल चूत में अधिक मजा आ रहा है... साला भचाक से पूरा ही घुस गया।"
मैंने उनकी चूत को जोर जोर से चोदना आरम्भ कर दिया। इस बार भाभी की सिसकियाँ तेज थी।
"भाभी जरा धीरे से ... मजा तो मुझे भी आ रहा है, पर पकड़े गये तो सारा मजा गाण्ड में घुस जायेगा !"
"क्या करूँ, बहुत मजा आ रहा है ..." भाभी ने अपना मुख भींच लिया और सिसकारी के बदले जोर जोर से अपनी सांसें छोड़ने लगी।
"अरे मर गई साले ... भेनचोद ... फ़ाड़ दे मेरी ... चोद दे इस भोसड़ी को ... मां ऽऽऽऽऽ..."
"भाभी, खूब मजा आ रहा है ना ... मुझे मालूम होता तो मैं आपको पहले ही चोद मारता..."
"बस चोद दे मेरे राजा ... उफ़्फ़्फ़्फ़ ... साला क्या लौड़ा है ...अंह्ह्ह्ह्ह्...।"
भाभी का बदन मस्त चुदाई से मैं तो ऐंठने लगा था। उसने अपनी चूत और चौड़ा दी ... मुझे चूत में फ़ंसा लण्ड साफ़ दिखने लगा था... मैंने शरारत की, उसके फ़ूल जैसे उभरे हुये गाण्ड के छेद में अपनी दो अंगुलियाँ प्रवेश करा दी। इसमें उसे बहुत मजा आया..."और जोर से गाण्ड में घुसा दे... साले तू तो मस्त लौण्डा है ... जोर के कर !"
लण्ड चूत चोद रहा था और अंगुलियाँ गाण्ड में अन्दर बाहर होने लगी थी।
"भेन की चूत ... मेरे राजा ... मैं तो गई ..."
"मैं भी आया... तेरी तो मां की चूत..."
"राजा और जमा के मार दे ..."
"ले रानी ... ले ... लपक लपक कर ले ... पूरा ले ले ... साली चूत है या ... ओह मैं गया..."
एक सीत्कार के साथ भाभी का रस चू पड़ा... और मेरा वीर्य भी... आह उसकी चूत में भरने लगा। वो और झुक गई, अपना सर बिस्तर से लगा लिया। हम दोनों पसीना पसीना हो चुके थे ... उसके पांव अब थरथराने लग गये थे... शायद वो इस अवस्था में थक गई थी। मैंने भाभी को सहारा दे कर बिस्तर पर लेटा दिया। भाभी ने अपना हाथ बढ़ा कर मुझे खींच लिया। मैं कटे वृक्ष के समान उनके ऊपर गिर पड़ा। भाभी ने अपने बदन के साथ मुझे पूरा चिपका लिया और बहुत ही इत्मिनान से मुझे लपेटे में लेकर प्यार करने लगी। जाने कब तक हम दोनों एक दूसरे को चूमते रहे, प्यार करते रहे... तभी भाभी चिंहुक उठी। मेरा खड़ा लण्ड जाने कब उनकी चूत में जोर मार कर अन्दर घुस कर चूत को चूमने लगा था। लाल टोपा चूत की गुलाबी चमड़ी को सहलाता हुआ भीतर घुस कर ठोकर मार कर अपनी मर्दानगी दिखाना चाह रहा था ...... रात फिर से गर्म हो उठी थी... दो जवान जिस्मों का वासना भरा खेल फिर से आरम्भ हो गया था ... दिल की हसरतें काम रस के रूप में बाहर निकल आती और फिर से एक नया दौर शुरू हो जाता..
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