Saturday, May 18, 2013

जमशेदपुर की गर्मी

 मैं जमशेदपुर शहर में रहता हूँ और मेरा कद 5 फीट 10 इंच है और मेरी उम्र 24 वर्ष है। मैं आपको एक सच्ची घटना बताने जा रहा हूँ जो कुछ दिन पहले ही हुई है :

मेरे पापा के करीबी दोस्त गुप्ता अंकल को ट्रेनिंग के लिए यूरोप जाना पड़ा तो वो अपने साथ अपने परिवार को भी घुमाने ले गए पर उनकी 19 साल की बेटी कोमल अपनी स्नातक की परीक्षा के कारण नहीं जा पाई। इसलिए उसकी देखभाल के लिए उन्होंने उसे हमारे घर पर छोड़ दिया। कोमल दिखने में बहुत ही ज्यादा सुन्दर है, 5 फीट 7 इंच शानदार कद, दूधिया गोरा रंग, नीली आँखें, लंबे बाल, गुलाब की पंखुड़ियों जैसे नरम मादक होंठ, संगमरमर जैसा बदन। अपने नाम के अनुरूप एकदम कोमल ! जो भी उसे देखता है देखता रह जाता है।
उसके प्रति मेरे मन में आकर्षण तो बहुत था पर कभी उससे बहुत ज्यादा बात नहीं हो पाती थी। यह पहला मौका था जब हमारे पास साथ बिताने के लिए इतना समय था। जाने कितने सालों से कोमल रानी को अपनी कल्पनाओं में महसूस करके मैं अपनी काम-ज्वाला अपने हाथों से आहूत करता रहा था पर पहली बार मुझे उम्मीद जगी थी कि मेरी वर्षों की इच्छा पूरी हो सकती है।
अब आपको उस हसीन पल के बारे में बताता हूँ। जब वो आई !

उस समय यहाँ बहुत ही ज्यादा गर्मी पड़ रही थी, घर में सिर्फ एक कमरे में ए.सी। है, तो वो कमरा हमने उसे दिया तो उसने यह कह कर मना कर दिया कि मम्मी-पापा को उस कमरे की ज्यादा जरूरत है क्योंकि उनकी तबियत ठीक नहीं थी। वो दूसरे कमरे में सो गई और मैं अपने कमरे में आकर सोने की कोशिश करने लगा।

पर आँखों में नींद कहाँ थी ! कोमल का नाजुक बदन ! मदमस्त जवानी ! सब मुझे बहुत उत्तेजित कर रहे थे। मैं उठ कर अपने बाथरूम में चला आया और नंगा होकर नहाने लगा और अपने व्याकुल लंड महाराज को सांत्वना देने लगा। मैं मन की कल्पना में कोमल का चूत मर्दन करने लगा और हाथों से लंड की ज्वाला शांत करने लगा : आह कोमल..... मेरी रानी... तेरी मदमस्त जवानी.... अब चूत चूस रहा हूँ... तेरे कठोर स्तन... आह ... ओह ..। ये गया मेरा सुपारा तेरी चूत के अंदर ! वाह क्या मजा है ! अन्दर बाहर.... और तेज... और तेज ! फच्च फच फच....

और लंड ने झूठी कल्पना पर ही अपना लावा उगल दिया। मैं तौलिया लपेट कर अपने कमरे में आया तो देखा जाने कब से यहाँ कोमल खड़ी थी। एक बार तो मैं बुरी तरह से डर गया कि कहीं इसने कुछ देखा तो नहीं? क्योंकि मैंने दरवाजा ठीक से बंद नहीं किया था, पर दूसरे ही पल लगा- अगर देखा होगा तो ठीक ही है।

"अरे कोमल इस वक्त यहाँ ?"

"प्रेम, गर्मी इतनी ज्यादा है कि मुझे बिलकुल भी नींद नहीं आ रही है, प्लीज़ कुछ करो न.... "

मैंने कहा- चलो, छत पर सोते हैं !

और वो मान गई। मैंने छत पर अगल बगल दो बिस्तर लगा दिए। हम दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे और फिर वो सोने की कोशिश करने लगी। वो अब भी परेशान थी।

मैंने पूछा तो वो बहुत हिचकते हुए बोली, "मुझे इतने ज्यादा कपड़ों में सोने की आदत नहीं है। मैं अपने कमरे में बहुत कम कपड़ों में सोती हूँ।"

मैंने कहा, "अगर ऐसी बात तो आप जैसे चाहे सो सकती है। मुझे कोई परेशानी नहीं और इसमें शर्माने की कोई बात नहीं। मैं भी तो सिर्फ निकर में हूँ।"

मैंने उसके तरफ पीठ कर ली ताकि उसे दिक्कत न हो। पर मन आशा और उत्साह से भर गया कि अब लगता है रास्ता साफ़ होने वाला है। एक एक पल बीते नहीं बीत रहा था।

थोड़ी देर बाद मैंने पलट कर देखा तो- ये क्या ?

वो तो सच में सो गई थी। पर मेरी तो नींद उड़ा दी थी उसने। मैं प्यासा अपना लंड हिलाता रह गया। चूत का भूत ऐसा सवार था कि उसे देखते देखते सुबह हो गई।

गुलाबी ब्रा और पैन्टी में वो गोरा बदन रात की चाँदनी को चौगुना कर रहा था। कितनी बेदाग मखमली देह थी उसकी। खैर अब हल्की रोशनी हो गई थी और मैं उठ कर बैठा कोमल को एक टक निहार रहा था कि तभी उसकी आँख खुली और उसने मुझे इस तरह से देखते हुए देख लिया और उठ कर बैठ गई पर कुछ बोली नहीं।

फिर हम नीचे चले आये।

मुझे खबर नहीं थी पर मेरे लंड के उतावलेपन के स्पंदन ने शायद उसकी अनछुई चूत की पंखुड़ियों में भी सिहरन पैदा कर दी थी।

रात को हम लोग फिर सोने छत पर आये।

तब उसने मुझसे पूछा, "सुबह तुम मुझे इस तरह से क्यूँ देख रहे थे ?"

मैंने टालना चाहा पर वो नहीं मानी तो मैंने यूँ ही एक शेर मार दिया :

आपको देख कर देखता रह गया,
क्या कहें कहने को अब क्या रह गया

शेर काम कर गया। अब शायद मेरे लंड की चाहत भी उसकी चूत पर छाने लगी थी। उसने मुझे बड़े प्यार से एक रोमांटिक गाना गाने की जिद की तो मैं समझ गया कि यही वक्त है गरम लोहे पर चोट करने का। मैंने उसे गाना सुनाया :

रात कली एक ख्वाब में आई और गले का हार हुई
सुबह को जब हम नींद से जागे, आंख उन्हीं से चार हुई
बाँहों में ले लूँ ऐसी तमन्ना एक नहीं, कई बार हुई.....

मुझे महसूस होने लगा कि मेरा जादू उस पर सही असर कर रहा है। फिर मैंने भी उससे गाने की जिद की तो दोस्तों पता है उसने क्या गाया?

"ज़रा ज़रा बहकता है, दहकता है आज तो मेरा तन बदन...
मैं प्यासी हूँ... मुझको भर लो अपनी बाँहों में.."

बस मैं समझ गया कि मेरी प्रेम तपस्या आज वरदान बन के बरसने वाली है। यह तो हरी झंडी है अपनी प्यास बुझाने की।

कोमल की आँखों में वासना और आमंत्रण दोनों स्पष्ट झलक रहा था।

और मैंने बिना देर किये उसे खींच कर सीने से लगा लिया। उसकी सांसें तेज हो गईं। मेरा भी यही हाल था। मेरे लंड ने खड़े होकर उसकी चूत का अभिवादन किया और उसकी चूत की पंखुड़ियों ने फड़क कर उसे स्वीकार किया।

मैंने उसके होठ अपने मुँह में ले लिए और जोर जोर से चूसने लगा।

वो भी मेरा साथ देने लगी।

क्या नर्म होंठ थे ! गजब का एहसास था !

दोनों पर नशा छाने लगा था !

मेरे हाथ उसके वक्ष पर चले गए। वो कसमसा गई।

कसे हुए 34-35 आकार के स्तन।

मैं उन्हें मसलने लगा तो वो सिसकारियाँ लेने लगी ! वाह.... कितना मजा आ रहा था !

अब मैंने उसकी नाईटी उतार दी और ब्रा के हुक भी खोल दिए। अब उसके दोनों उरोज बन्धन-मुक्त हो चुके थे। उस खूबसूरती पर मैं फ़िदा हो गया और उन्हें देखता रह गया।

वो शरमा गई और अपना सर उसने मेरे कंधे पर रख दिया। मैंने उसे बाँहों में कस कर भर लिया और आई लव यू कह दिया। पहले तो वो मुस्कुराई और फिर से शरमा गई।

फिर वो मेरे जांघ पर बैठ गई और उसने मेरे शर्ट के बटन खोल दिए और मेरे सीने के बालों में अपनी कोमल उंगलियाँ फ़िराने लगी।

मैं भी उसकी चूचियों से खेलने लगा और उन्हें चूसने लगा।

और फिर एक हाथ सरकाते हुए उसकी सलवार के अंदर उसके वस्ति-स्थल तक पहुँचा दिया।

उसके मुँह से आह निकली और उसने फिर मुझे जकड़ लिया।

मैं उसकी बिना बाल के योनि-ओष्ठ सहलाने लगा। उसकी चूत गीली हो चुकी थी।

मैंने उसकी दोनों पंखुड़ियों के बीच से एक उंगली अंदर डालनी चाही पर उंगली गई नहीं।

मैं समझ गया कि कोमल की कोमल चूत अब तक कुंवारी है। मन हर्ष से भर उठा और मैंने देर न करते हुए उसकी सलवार खोल दिया।

उसने शरमा कर अपना चेहरा ढक लिया। वो शर्म से एकदम लाल हो गई थी। उसकी शर्माने की अदा मुझे भा गई।

उसके हाथ मेरे बाल सहलाने लगे और मैं उसकी नाभि की गोलाईयों को अपनी जीभ से नापने लगा। मेरा लंड बुरी तरह से खड़ा हो चुका था और निकर में दबे रहने के कारण उसमें दर्द होने लगा था। इसलिए मैंने अपनी निकर उतार दी और चड्डी में आ गया।

मुझे भी शर्म आ रही थी इसलिए मैंने पहले कोमल की पैंटी उतारने का फैसला किया और उसकी पैंटी को धीरे से नीचे सरका दिया।

वाह क्या नजारा था.....

मध्यम सी चांदनी में उसकी चूत की गुलाबी पंखुड़ियाँ गजब की जानलेवा लग रहीं थी। मैं अपने को और नहीं रोक पाया !

मैं उसकी चूत चाटने लगा।

क्या मादक स्वाद था ! क्या नशा था !

उसके चूत के होंठों को मुँह में भर कर मैं जोर जोर से चूसने लगा और वो सिसकारियाँ भरने लगी। उसकी चूत से काम-रस की बूँदें निकल रहीं थी जो मेरी उत्तेजना को और तीव्र कर रही थीं।

मैंने अपनी जीभ उसकी चूत की दरार में डाल दी। सच ! बहुत मजा आ रहा था।

वो भी अपनी कमर को मेरे चेहरे पर दबा कर समर्थन देने लगी।

उससे भी अब नहीं रहा जा रहा था। उसने अपनी शर्म त्याग कर एक झटके में मेरी चड्डी को नीचे कर दिया और मेरे 7" लंबे और बहुत ही मोटे लंड को आज़ाद कर दिया। उसे देख कर वो चकित रह गई। मेरा लंड शायद उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा विकराल था।

वो बोली, "बाप रे ! यह तो बहुत मोटा और बड़ा है शायद मेरी कलाई से भी ज्यादा मोटा है। मेरी चूत जिसमें एक उंगली नहीं जा सकती ये कैसे जायेगा?"

उसकी मासूमियत पर मुझे हंसी आई और बहुत प्यार भी आया, मैंने कहा, "धीरे-धीरे सब सीख जाओगी मेरी जान !"

उसके हाथ अब मेरे लोहे जैसे लंड पर थे और वो उसे सहला रही थी। उसने मेरे सुपारे पर चूमा और फिर उसे मुँह में लेकर चूसने लगी। मुझे बहुत मजा आ रहा था। इतनी उत्तेजना को रोक पाना अब संभव नहीं था। मैं झड़ने वाला था।
तीन मिनट बाद मैं उसके मुँह में ही झड़ गया। उसे शायद इसकी उम्मीद नहीं थी पर फिर भी बेहिचक वो सारा वीर्य पी गई।

मैंने उसे उठाया और गले से लगा लिया। उसकी साँसें अब भी बहुत तेज चल रही थीं। मैं उसे लिटाकर उसके ऊपर आ गया और उसे चूमने लगा। फिर उसके मम्मे चूसने लगा।

फिर धीरे धीरे नीचे की ओर बढ़ते हुए नाभि से होता हुआ चूत तक पहुँच गया।
क्या गरम चूत थी। रस से भरी।

थोड़ी देर चूत का स्वाद चखने के बाद मैंने धीरे अपनी एक उंगली अंदर डाल दी।

उसकी चूत बहुत तंग थी। उसे दर्द हुआ। उसने अपनी जांघें भींच लीं।
ताज़ी चूत को देखकर मेरा लंड फिर से उफान मारने लगा। वो भी चुदने के लिए तड़प रही थी और अब मैं भी उसकी खूबसूरत चूत का उदघाटन करना चाहता था।

पर बिना क्रीम के इतने मोटे लंड का अंदर जाना नामुमकिन था। सो मैंने उसे मेरे लंड को थूक से पूरी तरह गीला करने को कहा।

वो मेरा लंड चूसने लगी और उसने उसे अच्छी तरह गीला कर दिया। अब मैंने भी उसकी चूत चाटी और थूक से उसे गीला कर दिया।

मैंने उसकी दोनों टाँगे फैलाई और उसके बीच में आ गया और उसके चूत के होठों को खोल कर अपने लंड का सुपारा लगा दिया और दबाने लगा।

अंदर जाने में परेशानी हो रही थी। पर जोश अपने चरम पर था। जी तो कर रहा था कि जोर का झटका मारूं और सारा लंड गहरे तक धंसा दूं, पर सिर्फ अपने मजे के लिया अपनी जान को कैसे दुखी कर सकता था।

खैर इस बार मैंने थोड़ा ज्यादा जोर लगाया तो घप्प से सुपारा अंदर चला गया।
उसे तेज दर्द हुआ और वो तड़पने लगी।

उसने मुझे निकालने को कहा पर मैं ऐसा नहीं कर सकता था। मैंने महसूस किया कि मेरे लंड से उसकी झिल्ली कुछ हद तक या तो फट गई थी या तन कर फटने के कगार पर थी।

मैं उसके ऊपर लेट गया और उसे चूमने लगा। एक हाथ से उसकी कमर को पकड़े रखा और दूसरे से उसकी चुच्ची मसलने लगा। उसे थोड़ी राहत मिली। अब वो मजे लेने लगी। मैंने मौका देख कर जोर लगाया और मेरा लंड आधे से ज्यादा अंदर चला गया।

उसकी झिल्ली फट चुकी थी।

वो चिल्लाई और मुझसे बाहर निकालने की मिन्नतें करने लगी। पर ऐसे में लंड को बाहर निकालने का मतलब था सारे किये कराये पर पानी फेरना। उसकी चूत घायल रह जाती और अगले कई दिनों तक उसमे वो उंगली भी घुसाने नहीं देती।

मैंने उसे प्यार से समझाया, "जान, थोड़ा सा बर्दाश्त करो। यकीन करो मेरा, बस थोड़ी देर में बहुत मजा आने लगेगा।"
 
वो चुप तो हो गई पर उसके आँखों के आंसू उसका दर्द बयान कर रहे थे। मैंने अपना ध्यान उसके मम्मों पर लगाया और उन्हें जोर जोर से चूसने लगा। दूसरे हाथ से उसके दूसरे मम्मे को मसलने लगा। मैंने उसके चुचूक को दांतों से काटा तो वो मचल उठी और सी सी की आवाज़ निकालने लगी। अब उसे मजा आने लगा था। उसने अपनी गाण्ड उठा कर चुदाई शुरू करने का आगाज़ किया और मैं धीरे धीरे अपना लंड अंदर-बाहर करने लगा।

उसे अब बहुत मजा आ रहा था। अपनी गांड उचका उचका कर वो मेरा साथ देने लगी। एक बार उसने नीचे से जोर लगाया और मैंने ऊपर से। और लंड पूरा का पूरा उसकी चूत में समा गया।

क्या गजब का एहसास था। उस अनुभूति के सामने सारे सुख बेकार लगे। इससे बेहतर जन्नत क्या हो सकती है भला। दोनों की मस्ती चरम पर थी और अब मैंने उसे पीठ के नीचे से जकड़ लिया और अपने सीने से चिपका लिया।

उसने भी मुझे ऊपर से पकड़ लिया और जोश में एक हाथ से मेरे बाल खींचने लगी। मैंने गति बढ़ा दी और जोर जोर से धक्के देने लगा। वो भी सी सी की आवाज़ निकालने लगी और मेरा साथ देने लगी। हम अब मस्ती में एक दूसरे से बातें करने लगे।

"मेरी जान आज तुम्हे अपना बना कर जन्नत पा ली।"

"जानू मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि चुदाई में इतना मजा आता है।"

उसके मुँह से निकले चुदाई शब्द ने मेरी जुबान का ताला खोल दिया। मैं शुरू हो गया।

"अरे मेरी रानी। मेरी जान। अभी तुमने देखा ही क्या है। चुदाई की कला तो ऐसी है कि जितने प्रयोग करो और जितनी बार करो, एक नया ही आनंद मिलता है।"

"वाह क्या चूत है तेरी मेरी रानी। आज तो मैं तुम्हारी चूत का भोंसड़ा बना दूंगा !"

"जानू, जम कर चोद मुझे। बना दे भोसड़ा मेरी कुंवारी चूत का। जोर से चोद मुझे। और जोर से.... और जोर से चोद..... जी कर रहा है खा जाऊं तेरे लौड़े को !"

"अरे जानेमन लंड खा जायेगी तो फिर चुदेगी कैसे ? अभी तो तुझे बहुत चोदना है मुझे। अभी तेरी गांड भी फाड़नी है। तेरे चूत का भूत उतारना है। कहाँ छुपी थी रे जानेमन अब तक। ऐसी दहकती जवानी को क्यूँ छुपा रखा था। अब देख तुझे चोद चोद कर तेरे रूप को और कैसे निखारता है मेरा मोटा लंड !"

"ओह लगता है बड़ा घमंड है लंड पे तुझे। चोद मुझे ! कितनी देर तक चोदता है !"

"अरे जान हर आदमी को अपने लंड पर घमंड होता है। फिर मेरा लंड तुझे भी तो इतना भा रहा है ?"

जोरदार चुदाई जारी थी। उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया था पर अब भी वो मेरा साथ पूरे जोश के साथ दे रही थी। फच्च फच्च के साथ पूरा वातावरण गर्म था।
"हाँ जानू बड़ी ज़ालिम लंड है तेरा। मेरे चूत का कीमा बना दिया रे। जी करता है यूँ ही चुदती रहूँ तुझसे जिंदगी भर। पहले क्यूँ नहीं चोदा यार और जोर से धक्का मार !"

"ये ले !" कह कर मैंने भी धक्का मारा।

"चोद जान.... जोर से चोद !"

अब मैं अवस्था बदलना चाहता था। वो शायद इसे भांप गई।

मैं जैसे ही उतर कर नीचे लेटा वो मेरे ऊपर आ कर बैठ गई और मेरा लंड पकड़ कर अपने चूत के द्वार पर लगा लिया। दोनों ने धक्के लगाये और लंड चूत में धंस गया।

वो उछल-उछल कर मजे लेने लगी और मुझे भी स्वर्ग का सुख देने लगी। मैंने दोनों हाथ से उसकी चुच्चियाँ पकड़ लीं और उन्हें मसलने लगा।

लगभग 15 मिनट ऐसे ही चुदाई चली फिर मैंने उसे खींच कर अपने ऊपर लिटा लिया औए नीचे से धक्के देने लगा और उसके होंठो को चूसने लगा। 5 मिनट ऐसे ही बीते।

चूँकि मैं पहले ही एक बार झड़ चुका था इसलिए ये दौर तो लंबा चलना ही था। मेरा रिकॉर्ड रहा है कि दूसरी पारी मैंने हमेशा कम से कम 25-30 मिनट की तो खेली ही है।

खैर अपनी पहली चुदाई इतनी लंबी होने पर कोमल बहुत संतुष्ट दिख रही थी।
पर अब चुदाई महायज्ञ में पूर्णाहुति देने का समय था। मैंने उसे घोड़ी बन जाने को कहा और मैंने उसकी चूत में पीछे से लंड का प्रवेश करा दिया। मैंने उसकी कमर पकड़ी और जोर जोर से धक्के देने लगा। वो मस्ती में बड़बड़ाने लगी। मैंने भी जोश में अपनी गति बढ़ा दी। हम दोनों का रोम रोम काम की ज्वाला से धधकने लगा।

"ले गया लंड तेरी चूत के अंदर तक ! ले अब इसे संभाल मेरी जान। अब ये ले ! और तेज ले ! ये ले !"

"चोद रे मेरे राजा ! और जोर से धक्के मार ! फाड़ के रख दे अपनी जान की चूत को ! आह..... कितना मजा आ रहा है ! गिरा दे अपना सारा माल चूत में !"

मेरी स्पीड से उसे अंदाज़ा हो गया था कि अब मैं झड़ने वाला हूँ। वो दो बार पहले ही झड़ चुकी थी। और फिर मेरा लंड चूत की गहराइयों में जा गड़ा और वीर्य की आहूति पूर्ण हो गई।

मैं उसके ऊपर निढाल हो गया।

कुछ देर हम ऐसे ही पड़े रहे। फिर मैं उठा और कोमल को अपनी बाँहों में भर लिया और उसको धन्यवाद कहा। उसने भी मुझसे धन्यवाद कहा।

दोस्तों ! उस रात हमने दो बार और चुदाई का खेल खेला। अगले दिन उसकी परीक्षा थी। रात भर चुदने का उस पर उल्टा असर हुआ। उसकी परीक्षा बहुत अच्छी हुई। वो बहुत खुश थी। उस दिन रात में हमने एक अनूठा अनुभव लिया।

मानसून की पहली बारिश में भीगते हुए चुदाई का मजा लिया जिसे अपनी अगली कहानी में लिखूंगा।

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