Saturday, May 18, 2013

यौन सुख



मुझे गलत मत समझना ! मुझे अपने अपने बच्चों से प्यार है। पति के पास पुरखों की काफ़ी जायदाद है और हमें किस चीज़ की कोई कमी नहीं है।
मेरे पास सब है जो मैं चाहती हूँ, बस यौन सुख के अलावा !
मैं छब्बीस साल की हूँ। सात साल पहले जब मेरी शादी मनोज से हुई तो ससुराल में मेरे पति के अलावा मेरे ससुर जी कुलभूषण ही थे।
आज परिवार में मैं, मेरे पति मनोज, मेरा छोटा सा बेटा पल्ल्व और एक बेटी नताशा हैं। ससुर जी का देहांत हो चुका है।
मेरे पिताजी का परिवार बहुत ग़रीब था। चार बहनों में से मैं सबसे बड़ी संतान थी। मेरी माँ लम्बी बीमारी के बाद मर गई। तब मैं सोलह साल की थी। माँ के इलाज के लिए पिताजी ने क्या कुछ नहीं किया। ढेर सारा कर्ज़ा हो गया। पिताजी रेवेन्यू ऑफिस में क्लर्क की नौकरी करते थे। इनकी आमदनी से मुश्किल से गुज़ारा होता था। मैं छोटे-मोटे काम कर लेती थी। आमदनी का और कोई साधन नहीं था कि हम कर्ज़ा चुका सकें। लेनदार लोग तकाज़े करते रहते थे। फिक्र से पिताजी की सेहत भी बिगड़ने लगी थी। ऐसे में मेरे सम्भावित ससुर कुलभूषण ने मदद दी। उनका इकलौता बेटा मनोज कुँवारा था। दिमाग़ से थोड़ा सा पिछड़ा होने के कारण उसे कोई कन्या नहीं देता था। कुलभूषण की पत्नी भी छः माह पहले ही मर चुकी थी। घर सँभालने वाली कोई नहीं थी। उन्होंने जब कर्ज़ के बदले में मेरा हाथ माँगा तो पिताजी ने तुरन्त ना बोल दी। मैं हाईस्कूल तक पढ़ी हुई थी। आगे कॉलेज में पढ़ने वाली थी। मेरे जैसी लड़की कैसे मनोज जैसे लड़के के साथ ज़िन्दगी गुज़ार सकेगी?
इस पर मैंने पिताजी से कहा,"आप मेरी फिक्र मत कीजिए। मेरी तीनों बहनों की सोचिए। आप रिश्ता मंज़ूर कर लीजिए, और सिर पर से कर्ज़ का बोझ दूर कीजिए। मैं सँभाल लूँगी।"
अपने हृदय पर पत्थर रख कर पिताजी ने मुझे मनोज से ब्याह दिया। तब मैं 19 साल की थी। मैं ससुराल में आई। पहले ही दिन ससुरजी ने मुझे पास बिठा कर कहा: "देख बेटी, मैं जानता हूँ कि मनोज से शादी करके तूने बड़ा बलिदान दिया है। मैंने तेरे पिताजी का कर्ज़ा पूरा करवा दिया है। लेकिन तूने जो किया है उसकी क़ीमत पैसों में नहीं गिनी जा सकती। तूने तेरे पिताजी पर और साथ ही मुझ पर भी बड़ा उपकार किया है।"
मैंने कहा,"पिताजी..."
उन्होंने मुझे बोलने नहीं दिया। कहने लगे: "पहले मेरी सुन ले। बाद में कहना... जो तेरा जी चाहे... ठीक है? तू मेरी बेटी बराबर है। ख़ैर, मुझे साफ़-साफ़ बताना पड़ेगा।"
उन्होंने नज़रें फिरा लीं और कहा,"मैंने मनोज का वो देखा है, मुझे विश्वास है कि वो तेरे साथ शारीरिक सम्बन्ध बना सकेगा और बच्चा पैदा कर सकेगा। मेरी यह विनती है कि तू ज़रा सब्र से काम लेना, जैसी ज़रूरत पड़े वैसी उसे मदद करना।"
यह सब सुनकर मुझे शरम आती थी। मेरा चेहरा लाल हो गया था और मैं उनसे नज़रें नहीं मिला पा रही थी। मैंने कुछ न कहा।
वो आगे बोले,"तुम्हारी सुहागरात परसों है, आज नहीं। मैं तुम्हें एक क़िताब देता हूँ, पढ़ लेना। सुहागरात पर काम आएगी। और मुझसे शरमाना मत, मैं तेरा पिता जैसा ही हूँ।"
मुझसे नज़रें चुराते हुए उन्होंने मुझे किताब दी और चले गए। किताब कामशास्त्र की थी। मैंने ऐसी किताब के बारे में सुना था लेकिन कभी देखी नहीं थी। किताब में चुदाई में लगे जोड़ों के चित्र थे। मैं ख़ूब जानती थी कि चुदाई क्या होती है, लंड क्या होता है, छुटना क्या है इत्यादि। फिर भी चित्रों को देखकर मुझे शरम आ गई। इन में से कई तस्वीरें तो ऐसी थी जिनके बारे में मैंने तो कभी सोचा तक ना था। एक चित्र में औरत ने लंड मुँह में लिया हुआ था। छिः छिः, इतना गंदा? दूसरे में उसी औरत की चूत आदमी चाट रहा था। एक में आदमी का पूरा लंड औरत की गाँड में घुसा हुआ दिखाया था। कई चित्रों में एक औरत दो-दो आदमी से चुदवाती दिखाई थी। ये देखने में मैं इतनी तल्लीन हो गई कि कब मनोज कमरे में आए, वो मुझे पता ना चला। आते ही उसने मुझे पीछे से मेरे आँखों पर हाथ रख दिया और बोले,"कौन हूँ मैं?"
मैंने उनकी कलाईयाँ पकड़ लीं और बोली,"छोड़िए, कोई देख लेगा।"
मुझे छोड़कर वह सामने आए और बोले: क्या पढ़ती हो? कहानियों की किताब है?"
अब मेरे लिए समस्या हो गई कि उन्हें वह किताब मैं कैसे दिखाऊँ। किताब छुपा कर मैंने कहा,"हाँ, कहानियों की किताब है। रात में आपको सुनाऊँगी।"
खुश होकर वो चला गया। कितना भोला था! उसकी जगह कोई दूसरा होता तो मुझे छेड़े बिना नहीं जाता। दो दिन बाद मैंने देखा कि लोग मनोज की हँसी उड़ा रहे थे। कोई-कोई भाभी कहती: देवरजी, देवरानी ले आए हो, तो उनसे क्या करोगे?
उनके दोस्त कहते थे: भाभी गरम हो जाए और तेरी समझ में न आए तो मुझे बुला लेना।
एक ने तो सीधा पूछा: मनोज, चूत कहाँ होती है, वो पता है?
मुझे उन लोगों की मज़ाक पसन्द ना आई। अब मैं ससुरजी के दिल का दर्द समझ सकी। मुझे उन दोनों पर तरस भी आया। मैंने निर्णय किया कि मैं बाज़ी अपने हाथ में लूँगी, और सबकी ज़ुबान बन्द कर दूँगी, चाहे मुझे कुछ भी करना पड़े।
तीसरी रात सुहागरात थी। मेरी उम्र के दो रिश्ते की ननदों ने मुझे सजाया-सँवारा और शयनकक्ष में छोड़ दिया। दूसरी एक चाची मनोज को ले आई और दरवाज़ा बन्द करके चली गईं। मैं घूँघट में पलंग पर बैठी थी। घूँघट हटाने के बदले मनोज नीचे झुक कर झाँकने लगा। वो बोला: देख लिया, मैंने देख लिया। तुमको मैंने देख लिया। चलो अब मेरी बारी, मैं छुप जाता हूँ, तुम मुझे ढूँढ़ निकालो। वह छोटे बच्चे की तरह छुपा-छुपी का खेल खेलना चाहता था। मुझे लगा कि मुझे ही शुरुआत करनी पड़ेगी।
घूँघट हटा कर मैंने पूछा: पहले ये बताओ कि मैं तुम्हें पसन्द हूँ या नहीं?
मनोज शरमा कर बोला: बहुत पसन्द हो। मुझे कहानियाँ सुनाओगी ना?
मैं: ज़रूर सुनाऊँगी। लकिन थोड़ी देर तुम मुझसे बातें करो।
मनोज: कौन सी कहानी सुनाओगी? वो किताब वाली जो तुम पढ़ रहीं थीं वो?
मैं: हाँ, अब ये बताओ कि मैं तुम्हारी कौन हूँ?
मनोज: वाह, इतना नहीं जानती हो? तुम मेरी पत्नी हो, और मैं तेरा पति।
मैं: पति-पत्नी आपस में मिलकर क्या करते हैं?
मनोज: मैं जानता हूँ, लेकिन बताऊँगा नहीं।
मैं: क्यों?
मनोज: वो जो सुरेन्द्र है ना ! कहता है कि पति-पत्नी गंदा करते हैं!
मैंने यह नहीं पूछा कि सुरेन्द्र कौन है, मैंने सीधा पूछा: गंदा मायने क्या? नाम तो कहो, मैं भी जानूँ तो।
मनोज: चोदते हैं।
लम्बा मुँह करके मैं बोली: अच्छा?
बिन बोले उसने सिर हिला कर हाँ कही।
गम्भीर मुँह से मैंने फिर पूछा: लेकिन यह चोदना क्या होता है?
मनोज: सुरेन्द्र ने कभी मुझे यह नहीं बताया।
शरमाने का दिखावा करके मैंने कहा: मैं जानती हूँ, कहूँ?
मनोज: हाँ, हाँ, कहो तो।
उस रात मनोज ने बताया कि कभी-कभी उसका लंड खड़ा होता था। कभी-कभी स्वप्न-दोष भी होता था। कुलभूषण सच कहते थे। उन्होंने मनोज का खड़ा लंड देखा होगा।
मैंने बात आगे बढ़ाई: ये कहो, मुझमें सबसे अच्छा क्या लगता है तुम्हें? मेरा चेहरा? मेरे हाथ? मेरे पाँव? मेरे ये...? मैंने उसका हाथ पकड़ कर स्तन पर रख दिया।
मनोज: कहूँ? तेरे गाल।
मैं: मुझे पप्पी दोगे?
मनोज: क्यों नहीं?
उसने गाल पर चूमा, और मैंने फिर उसके गाल पर। उसके लिए यह खेल था। जैसे ही मैंने अपने होंठ उसके होंठो से लगाया, तो उसने झटके से छुड़ा लिया और बोला: छिः छिः ऐसा गन्दा क्यूँ करती हो?
मैं: गंदा सही? तुम्हें मीठा नहीं लगता?
मनोज: फिर से करो तो।
मैंने मुँह से मुँह लगा कर चूमना शुरु कर दिया।
मनोज: अच्छा लगता है, करो ना ऐसी पप्पी।
मैंने चूमने दिया। मैंने मुँह खोल कर उसके होंठ चाटे, और वही सिलसिला दोहराया।
मैंने पूछा: प्यारे, पप्पी करते-करते तुमको कुछ होता है?
मनोज शरमा कर कुछ बोला नहीं।
मैंने कहा: नीचे पेशाब की जगह में कुछ होता है ना?
मनोज: तुमको कैसे मालूम?
मैं: मैं स्कूल में पढ़ी हूँ, इसलिए। कहो, उधर गुदगुदी होती है ना?
मनोज: किसी से कहना मत।
मैं: नहीं कहूँगी। मैं तुम्हारी पत्नी जो हूँ।
मनोज: मेरी नुन्नी में गुदगुदी होती है और कड़ा हो जाता है।
मैं: मैं देख सकती हूँ?मनोज: नहीं। अच्छे घर की लड़कियाँ लड़कों की नुन्नी नहीं देखा करतीं।मैं: मैंने तो स्कूल में ऐसा पढ़ा है कि पति-पत्नी के बीच कोई भी राज़ नहीं रहता है। पत्नी पति की नुन्नी देख सकती है और उनसे खेल भी सकती है। पति भी पत्नी की वो... वो... भोस देख सकता है, तुमने मेरी देखनी है?
मनोज: पिताजी जानेंगे तो बड़ी पिटाई होगी।
मैं: शह्ह्हह... कौन कहेगा उनसे? हमारी ये बात गुप्त रहेगी, कोई नहीं जान पाएगा।
मनोज: हाँ, हाँ कोई नहीं जान पाएगा।
मैं: खोलो तो तुम्हारा पाजामा।
पाजामा खोलने में मुझे मदद करनी पड़ी। निकर उतारी। तब फनफनाता हुआ उसका सात इंच का लम्बा लंड निकल पड़ा। मैं खुश हो गई, मैंने मुट्ठी में पकड़ लिया और कहा: जानते हो? ये तुम्हारी नुन्नी नहीं है। यह तो लंड है।
मनोज: तुम बहुत गन्दा बोलती हो।
मैंने लण्ड पर मुठ मारी और पूछा: कैसा लगता है?
लंड ने एक-दो ठुमके लगाए।
वो बोला: बहुत गुदगुदी होती है।
मैं: मेरी भोस देखनी नहीं है?
मनोज: हाँ, हाँ।
यह वक्त मेरे शरमाने का नहीं था। मैं पलंग पर चित्त लेट गई, घाघरी उठाई और पैन्टी उतार दी। वह मेरी नंगी भोस देखता ही रह गया। बोला: मैं इसे छू सकता हूँ?
मैं: क्यों नहीं? मैंने जो तुम्हारा लंड पकड़ रक्खा है।
डरते-डरते उसने भोस के बड़े होंठ छुए। मेरे कहने पर चौड़े किए। भीतरी हिस्सा काम-रस से गीला था। आश्चर्य से वो देखता ही रहा।
मैं: देखा? वो जो चूत है ना, वो इतनी गहरी होती है कि सारा लंड अन्दर समा जाए।
मनोज: हो सकता है, लेकिन चूत में लंड डालने की क्या ज़रूरत?
मैं: प्यारे, इसे ही चुदाई कहते हैं।
मनोज: ना, ना, तुम झूठ बोलती हो।
मैं: मैं क्यूँ झूठ बोलूँ? तुम तो मेरे प्यारे पति हो। मैंने अभी अपनी भोस दिखाई कि नहीं?
मनोज: मैं नहीं मानता।
मैं: क्या नहीं मानते?
मनोज: वो जो तुम कहती हो ना कि लंड चूत में डाला जाता है।
मुझे वो किताब याद आ गई। मैंने कहा: ठहरो, मैं दिखाती हूँ। किताब के पहले पन्ने पर कुलभूषण लिखा हुआ था. वो दिखा कर मैंने कहा: ये किताब पिताजी की है। तस्वीरें देख वह हैरान रह गया। मैंने कहा: देख लिया ना? अब तसल्ली हुई कि चुदाई में क्या होता है?
उसपर कोई असर न पड़ा। वो बोला: मुझे पेशाब लगी है।
मैं: जाईए पेशाब करने के बाद लंड पानी से धो लीजिए।
वह पेशाब कर आया। उसका लंड नर्म हो गया था। मैंने लाख सहलाया, फिर से हिला नहीं। मुँह में लेकर चूसना चाहा, पर मनोज ने ऐसा करने ना दिया। रात काफ़ी बीत चुकी थी। मैं उत्तेजित भी हो गई थी, लेकिन मनोज अनाड़ी था।
लंड खड़ा होने के बावज़ूद उसके दिमाग़ में चोदने की इच्छा पैदा नहीं हुई थी। वो बोला: मुझे नींद आ रही है।
मैंने उसे गोद में लेकर सुलाया, तो तुरन्त नींद में खो गया। मैंने सोचा आगे-आगे चुदाई के पाठ पढ़ाऊँगी और एक दिन उसका लंड मेरी चूत में लेकर चुदवाऊँगी ज़रूर। लेकिन मेरे नसीब़ में कुछ और लिखा था।
उनके कुछ शरारती दोस्तों ने उनके दिल में ठसा दिया कि चूत में दाँत होते हैं, नूनी जो चूत में डाली तो चूत उसे काट लेगी। फिर पेशाब कहाँ से करेगा। मैंने लाख समझाया, लेकिन वो नहीं माना। मैंने कहा कि ऊँगलियाँ डाल कर देख लो कि अन्दर दाँत हैं या नहीं। उसने वह भी नहीं किया। बिन चुदवाए मैं कँवारी ही रही।
कुलभूषण की पहचान वाले और मनोज के कई मुँह-बोले दोस्तों में से कितनी ही ऐसे थे जिन्होंने मुझ पर बुरी नज़र डाली। दूर के एक देवर ने खुला पूछ लिया: भाभी, मनोज चोद ना सके, तो घबराना नहीं, मैं जो हूँ। चाहे तब बुला लेना। उन सबको मैंने कह दिया कि मनोज मेरे पति हैं और मुझे अच्छी तरह चोदते हैं। दिनभर मैं उन सब का हिम्मत से सामना करती थी। रात अनाड़ी बलम से बिन चुदवाए फूट-फूट कर रो लेती थी।
कुलभूषण लेकिन होशियार थे, उन्हें यकीन हो गया था कि मनोज ने मुझे चोदा नहीं था। मुझे शक है कि चुपके से वो हमारे बेडरूम में देखा करते थे। जो कुछ भी हो, उन्हें पितामह बनने का उतावलापन था।
एक दिन एकांत पाकर मुझसे पूछा: क्यूँ बेटी? सब ठीक हैना?
उनका इशारा चुदाई की ओर था जानकर मुझे शर्म आ गई। मैंने सिर झुका लिया और कुछ ना कह सकी... मैं रो पड़ी।
मेरे कंधों पर हाथ रखकर वो बोले: मैं सब जानता हूँ, तू अभी भी कँवारी है। मनोज ने तुझे चोदा नहीं है सच है ना?
ससुरजी के मुँह से चोदा शब्द सुनकर मैं चौंक गई, उनकी बाँहों से निकल गई, कुछ बोली नहीं। आँसू पोंछ कर सिर हिला कर हाँ कहा।
वो फिर मेरे नज़दीक आए, मेरे कंधों पर अपनी बाँह रख दी और बोले: बेटी, ये राज़ हम हमारे बीच रखेंगे कि मनोज चोदने के क़ाबिल नहीं है। लेकिन मुझे पोता चाहिए, इसका क्या? मेरी इतनी बड़ी जायदाद, इतना बड़ा कारोबार सब सफ़ा हो जाएँगे, मेरे मरने के बाद। वो तो वो लेकिन जब मैं इस दुनिया में ना रहूँ तब तेरी और मनोज की देख-भाल कौन करेगा जब तुम दोनों बुड्ढे हो जाओगे? मुझे लड़का चाहिए। है कोई इलाज तेरे पास?
मैंने कहा: मैं क्या कर सकती हूँ पिताजी?
कुलभूषण: तुझे करना कहाँ है? करवाना है समझीं?
मैं: हाँ, लेकिन किस के पास जाऊँ? आप की इच्छा है कि मैं कोई और मर्द छीः छी:। मुझसे यह नहीं हो सकेगा।
कुलभूषण: मैं कहाँ कहता हूँ कि तू ग़ैर मर्द से चुदवा।
ससुरजी फिर चुदवाओ शब्द बोले। मुझे शरम आ गई। सच कहूँ तो मुझे बुरा नहीं लगा, थोड़ी सी गुदगुदी हो गई और होंठों पर मुस्कान आ गई जो मैंने मुँह पर हाथ रख कर छुपा ली।
मैंने पूछा: आपकी क्या राय है?
कुछ मिनटों तक वे चुप रहे, सोच में पड़े रहे, अन्त में बोले: कुछ ना कुछ रास्ता मिल जाएगा, मैं सोच लूँगा। मुझे तू वचन दे कि तू पूरी सहायता करेगी। करेगी ना?
मैंने वचन दे दिया। वो चले गए। उस दिन के बाद ससुरजी का रंग ही बदल गया। अब वो अच्छे कपड़े पहनने लगे। रोज़ शेविंग करके स्प्रे लगाने लगे। बाल जो थोड़े से सफेद हुए थे, वो रंग लगवा कर काले करवा लिए। एक बार उन्होंने पानी का प्याला माँगा। मैंने प्याला दिया तब लेते वक्त उन्होंने मेरी ऊँगलियाँ छू लीं। दूसरी बार प्याला पकड़ने से पहले मेरी कलाई पकड़ ली। बात-बात में मुझे बाँहों में लेकर दबोच लेने लगे। मुझे यह सब मीठा लगता था। आख़िर वो एक हट्ठे-कट्ठे मर्द थे, भले ही मनोज की तरह जवान ना थे लेकिन मर्द तो थे ही। सासूजी का देहान्त हुए एक साल हो गया था। मेरे ख़्याल से उन्होंने उसके बाद कभी चुदाई नहीं की थी किसी के साथ। मेरे जैसी जवान लड़की अगर घर में हो, एकांत मिलता हो तो उनका लंड खड़ा हो जाए, इसमें उनका क्या क़सूर?
थोड़े दिन तक मेरी समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूँ। फिर सोचने लगी कि क्यों ना मैं उनका साथ दूँ! अधिक से अधिक वो क्या करेंगे? मुझे चोदेंगे! हाय यह सोचते ही मुझे गुदगुदी सी होने लगी। ना, ना, ऐसा नहीं करना चाहिए। क्यूँ नहीं? बच्चा पैदा होगा तो सब समस्याएँ हल हो जाएँगीं। किसे पता चलेगा कि बच्चा किसका है?
सच कहूँ तो मुझे भी तो चाहिए था कोई चोदने वाला। ऐरे-गैरे को ढूँढूँ, इनसे मेरे ससुरजी क्या कम थे? मैंने तय किया कि मेरे कौमार्य की भेंट मैं अपने ससुरजी को दूँगी और उनसे चुदवा कर जब चूत खुल जाए तब मनोज का लंड लेने की सोचूँगी। उस दिन से ही मैंने ससुरजी को इशारे भेजना शुरु कर दिया। मैंने ब्रा पहननी बन्द कर दी। सलवार-कमीज़ की जगह चोली-घाघरी और ओढ़नी डालने लगी। वो जब कलाई पकड़ लेते थे तब मैं शरमा कर मुस्कुराने लगती। मेरी प्रतिक्रियाओं व प्रतिभावों को देखकर वे बेहद खुश हुए। उन्होंने छेड़-छाड़ बढ़ाई। एक-दो बार मेरे गाल पर चिकोटी काट ली उन्होंने। दूसरी बार मेरी गाँड पर हाथ फिरा लिया। मैं अक्सर ओढ़नी का पल्लू गिरा कर चूचियाँ दिखाती तो कभी-कभी घाघरी खिसका कर जाँघें दिखाती रहती। दिन-ब-दिन सेक्स का तनाव बढ़ता चला। एक समय ऐसा आया कि उनकी नज़र पड़ते ही मेरी शरम जाने लगी, उनके छू जाने से ही मेरी चूत गीली होने लगी। उनकी मौज़ूदगी में घुण्डियाँ कड़ी की कड़ी रहने लगीं। अब वो अपनी धोती में छुपा टेन्ट मुझसे छुपाते नहीं थे। मैं इन्तज़ार करती कि कब वो मुझ पर टूट पड़ें।
आख़िर वो रात आ ही गई। मनोज सो गया था। ससुरजी रात के बारह बजे बाहर गाँव से लौटे। मैंने खाना तैयार रक्खा था। वो स्नान करने गए और मैंने खाना परोसा। वो नहाकर बाथरूम से निकले तब मैंने कहा: खाना तैयार है, खा लीजिए।
वो बोले: तूने खाया?
मैं: नहीं जी, आप के आने की राह देख रही थी।
वो बोले: कुमुदा, ये खाना तो हम हर रोज़ खाते हैं। जिसकी भूख मुझे तीन सालों से है, वो कब खिलाओगी?
मैं: मैं कैसे खिलाऊँ? कहाँ है वो खाना?
वो: तेरे पास है।
मैं समझ रही थी जो वह कह रहे थे। मुझे शर्म आने लगी। नज़रें नीची करके मैंने पूछा: मेरे पास? मेरे पास तो कुछ नहीं है।
वो: है, तेरे पास ही है, दिखाऊँ तो खिलाओगी?
सिर हिला कर मैंने हाँ कही। उधर मेरी चूत गीली होने लगी और दिल की धड़कन बढ़ गई। वो मेरे नज़दीक आए। मेरे हाथ अपने हाथों में लिए, होंठों से लगाए, बोले: तेर पास ही है बताऊँ? तेरी चिकनी गोरी जाँघों के बीच।
मैं शरमा गई, उनसे छूटने की कोशिश करने लगी, लेकिन उन्होंने मेरे हाथ छोड़े नहीं, बल्कि उठाकर अपनी गर्दन में डाल दिए। मैं सरक कर नज़दीक गई। मेरी कमर पर हाथ रखकर उन्होंने मुझे अपने पास खींच लिया और बाँहों में जकड़ लिया। मैंने मेरा चेहरा उनके चौड़े सीने में छुपा दिया। मेरे स्तन उनके पेट के साथ दब गए। उनका खड़ा लंड मेरे पेट से दब रहा था। मेरे सारे बदन में झुरझुरी फैल गई। एक हाथ से मेरा चेहरा उठाकर उसने मेरे मुँह पर अपना मुँह लगाया। पहले होंठों से होंठ छुए, बाद में दबाए, आख़िर जीभ से मेरे होंठ चाटे और अपने होंठों के बीच लेकर चूसे। मुझे कुछ होने लगा। ऐसी गरमी मैंने कभी महसूस नहीं की थी। मेरे स्तन भारी हो गए। घुण्डियाँ कड़ी हो गईं। चूत ने रस छोड़ना शुरु कर दिया। मुझसे खड़ा नहीं रहा जा रहा था।
चुम्बन का मेरा यह पहला अनुभव था, और बहुत मीठा लग रहा था। उन्होंने अपने बन्द होंठों से मेरे होंठ रगड़े। बाद में जीभ निकाल कर होंठ पर फिराई। फिराते-फिराते उन्होंने जीभ की नोंक से मेरे होंठों के बीच की दरार टटोली। मेरे रोएँ खड़े हो गए। अपने-आप मेरा मुँह खुल गया और उनकी जीभ मेरे मुँह में पहुँच गई। उनकी जीभ मेरे मुँह में चारों ओर घूम गई। जब उन्होंने जीभ निकाल दी तब मैंने मेरी जीभ से वैसा ही किया। मैंने सुना था कि ऐसे चुम्बन को फ्रेंच किस कहते हैं। फ्रेंच किस करते-करते ही उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और बेडरूम में चल दिए, जाकर पलंग पर चित्त लिटा दिया।
ओढ़नी का पल्लू हटाकर उन्होंने चोली में क़ैद मेरे छोटे स्तनों को थाम लिया। चोली पतले कपड़े की थी और मैंने ब्रा पहनी नहीं थी इसलिए मेरी कड़ी घुण्डियाँ उनकी चुटियों में पकड़ी गईं, इतने से उनको संतोष हुआ नहीं। फटाफट वो चोली के हुक खोलने लगे। मैं चुम्बन करने में इतनी मशगूल थी कि कब उन्होंने चोली उतार फेंकी, उसका मुझे पता न चला। जब मेरी घुण्डियाँ मसली गईं तब मैंने जाना कि मेरे स्तन नंगे थे और उनके पंजे में क़ैद थे। स्तन सहलाना तो कोई ससुरजी से सीखे। ऊँगलियों की नोक़ से उन्होंने स्तन पंजे में दबोच लिया। मेरे स्तन में दर्द होने लगा। लेकिन मीठा लगता था। अन्त में उन्होंने एक के बाद एक घुण्डियों और स्तन का गहरा घेरा च्यूँटी में लिया और खींचा और मसला। इस दौरान चुम्बन चालू ही था। अचानक चुम्बन छोड़कर उन्होंने अपने होंठ घुण्डियों से चिपका दिए। उनके होंठ लगते ही घुण्डियों से करंट जो निकला वो चूत के भग्नों तक जा पहुँचा। वैसे ही मेरी घुण्डियाँ बहुत नाज़ुक थीं, कभी-कभी ब्रा का स्पर्श भी सहन नहीं कर पाती थी।
उस रात पहली बार मेरी घुण्डियों ने मर्द की ऊँगलियों व होंठों का अनुभव किया। छोटे लड़की की नुन्नी की तरह चूचियों का गहरा घेरा, और घुण्डियाँ सभी कड़े हो गए थे। एक-एक करके उन्होंने दोनों घुण्डियाँ चूसीं, दोनों स्तन सहलाए और मसल डाले। उन्होंने मुझे धकेल कर चित्त लिटा दिया, वो औंधे और मेरे बदन पर छा गए। मेरी जाँघ के साथ उन का कड़ा लंड दब गया था। ज़्यादा देर उनसे बर्दाश्त ना हो सकी। वो बोले, अब में देर करूँगा तो चोदे बिना ही झड़ जाऊँगा। तुम तैयार हो?
मेरी हाँ या ना कुछ काम के नहीं थे। मुझे भी लंड तो लेना ही था। मेरी सारी भोस सूज गई थी और काम-रस से गीली-गीली हो गई थी। मैंने ख़ुद पाँव लम्बे किए और चौड़े कर दिए वो ऊपर चढ़ गए। धोती हटा कर लंड निकाला और भोस पर रगड़ा। मेरे नितम्ब हिलने लगे। वो बोले: कुमुदा बेटी, ज़रा स्थिर रह जा, ऐसे हिला करोगी, तो मैं कैसे लंड डालूँगा?
मैंने मुश्किल से मेरे नितम्ब हिलने से रोके। हाथ में लंड पकड़कर उन्होंने चूत में डालना शुरु किया लेकिन लंड का मत्था फिसल गया और चूत का मुँह पा न सका। पाँच-सात धक्के ऐसे ही बेकार गए। मैंने जाँघें ऊपर उठाईं, फिर भी वो चूत ढूँढ़ ना सके। लंड अब ज़रा सा नर्म होने लगा। उनका उतावलापन बढ़ गया। उस वक्त मुझे याद आया कि नितम्ब के नीचे तकिया रखने से भोस का कोण बदलता है और चूत उठ जाती है। उनसे पूछे बिना मैंने तकिया नितम्ब के नीचे रख दिया। अबकी बार जब धक्का लगाया तब लंड का मत्था चूत मे मुँह में घुस गया। मेरी चूत ने संकुचन किया।
अब आगे क्या रहा बताने को? इसी तरह पल्ल्व और नताशा हो गए। एक भी दिन ऐसा नहीं गया होगा जिस दिन ससुर जी ने मुझे ना चोदा हो।
लेकिन पिछले साल ससुर जी दिल के दौरे से चल बसे और मेरी चूत फ़िर अनाथ हो गई।
अब अपने बदन की देखभाल के लिए और प्यास बुझाने के लिए एक आदमी को खोजने का फैसला किया है।
मैं छब्बीस साल की हूँ और जरा मुझे देखो तो ! इस उम्र में भी मैं बुरी तो नहीं दिखती ना?
उभरे स्तन और कसे कूल्हे जो प्रतीक्षा कर रहे हैं कि आप अपने मजबूत हाथों से उन्हें फ़ैलाएँ !
मैं सिर्फ़ एक माँ ही नहीं हूँ, मैं एक ऐसी औरत हूँ जिसे नियमित आधार पर अपनी योनि में कुछ चाहिए। इतने दिनों से मैंने अपनी इच्छाओं का दमन कर रखा था, लेकिन अब मैं आपके शक्तिशाली लिंग पर अपना योनि-रस फ़व्वारे की तरह छोड़ने को तैयार हूँ।

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